contents:
- 1. परिभाषा
- 2. स्वरूप
- 3. स्थिति
- 4. कार्य
- 5. उपमा से समझें
- 6. वेदांत के अनुसार
- 7. उद्धरण से
- 🔹 1. आत्मा क्या है? (What is Ātman?)
- ✦ आत्मा की विशेषताएँ:
- ✦ शास्त्रीय प्रमाण:
- 🔹 2. परमात्मा क्या है? (What is Paramātman?)
- ✦ परमात्मा की विशेषताएँ:
- ✦ शास्त्रीय प्रमाण:
- 🔹 3. विभिन्न दर्शनों के अनुसार आत्मा और परमात्मा
- ✅ 1. अद्वैत वेदांत (Adi Shankaracharya)
- ✅ 2. द्वैत वेदांत (Madhvacharya)
- ✅ 3. विशिष्टाद्वैत वेदांत (Ramanujacharya)
- ✅ 4. सांख्य दर्शन
- ✅ 5. योग दर्शन (Patanjali)
- 🔹 4. आत्मा और परमात्मा के बीच संबंध
- 🔹 7. निष्कर्ष (Conclusion)
- Ātman and Paramātman: A Complete Spiritual and Philosophical Insight
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1. परिभाषा
- आत्मा:
आत्मा प्रत्येक जीव के अंदर स्थित चेतन तत्व है। यह शरीर, मन, बुद्धि से अलग, अविनाशी और शुद्ध चेतना है।
➤ यह “मैं कौन हूँ?” का उत्तर है। - परमात्मा:
परमात्मा सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त सर्वोच्च सत्ता है, जो सर्वज्ञ, सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान है।
➤ यह “सबसे महान सत्ता कौन है?” का उत्तर है।
2. स्वरूप
- आत्मा: सीमित, व्यक्तिगत चेतना।
- परमात्मा: असीमित, सार्वभौमिक चेतना।
3. स्थिति
- आत्मा: प्रत्येक जीव के भीतर है।
- परमात्मा: सब जगह एक समान व्याप्त है, आत्मा के भीतर भी।
4. कार्य
- आत्मा: केवल साक्षी है — देखती है, अनुभव करती है।
- परमात्मा: सृष्टि का निर्माण, पालन और संहार करने वाली शक्ति है।
5. उपमा से समझें
- आत्मा = एक बूँद
- परमात्मा = पूरा समुद्र
6. वेदांत के अनुसार
- अद्वैत वेदांत कहता है:
आत्मा और परमात्मा वास्तव में एक ही हैं, अज्ञानवश भिन्न प्रतीत होते हैं।
➤ “अहं ब्रह्मास्मि” – मैं ही ब्रह्म हूँ। - द्वैत वेदांत (जैसे मध्वाचार्य का दर्शन) कहता है:
आत्मा और परमात्मा अलग हैं, और आत्मा परमात्मा की भक्ति करके मुक्ति पाती है।
7. उद्धरण से
- भगवद गीता (अध्याय 10, श्लोक 20): “अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः” – हे अर्जुन! मैं (परमात्मा) हर जीव की आत्मा में स्थित हूँ।
🔹 1. आत्मा क्या है? (What is Ātman?)
आत्मा संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है – “स्वयं” या “स्वरूप”।
यह हर जीव के अंदर स्थित चैतन्य तत्त्व है – जो न जन्म लेता है, न मरता है।
✦ आत्मा की विशेषताएँ:
- नित्य (Shāśvata) – कभी नष्ट नहीं होती
- चेतन (Conscious) – ज्ञानस्वरूप
- साक्षी (Witness) – साक्षी भाव से देखती है
- अव्यय (Immutable) – बदलती नहीं
- अनादि-अनन्त (Without beginning or end)
✦ शास्त्रीय प्रमाण:
- कठोपनिषद: न जायते म्रियते वा कदाचित्
(आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।) - गीता 2.20: न जायते म्रियते वा कदाचित् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
🔹 2. परमात्मा क्या है? (What is Paramātman?)
परमात्मा = परम + आत्मा
अर्थात् – “सर्वोच्च आत्मा”। यह वह सर्वव्यापक चेतना है जो संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है और सब आत्माओं का मूल स्रोत है।
✦ परमात्मा की विशेषताएँ:
- सर्वव्यापक (Omnipresent)
- सर्वज्ञ (Omniscient)
- सर्वशक्तिमान (Omnipotent)
- निर्गुण-सगुण (गुणातीत और फिर भी गुणधारी)
- सृष्टिकर्ता, पालक, संहारक
✦ शास्त्रीय प्रमाण:
- मुण्डकोपनिषद: ब्रह्मैवेदमिदं सर्वं – यह सम्पूर्ण जगत ब्रह्म (परमात्मा) से ही व्याप्त है।
- गीता 10.20: अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
🔹 3. विभिन्न दर्शनों के अनुसार आत्मा और परमात्मा
✅ 1. अद्वैत वेदांत (Adi Shankaracharya)
- आत्मा और परमात्मा अलग नहीं हैं।
- अविद्या (अज्ञान) के कारण आत्मा स्वयं को शरीर समझती है।
- “अहं ब्रह्मास्मि” – आत्मा = ब्रह्म (परमात्मा)
🔹 उदाहरण: जैसे घड़ा (शरीर) टूटे तो घड़े में बंद आकाश (आत्मा) और बाहरी आकाश (परमात्मा) एक ही हो जाते हैं।
✅ 2. द्वैत वेदांत (Madhvacharya)
- आत्मा और परमात्मा सदैव भिन्न हैं।
- आत्मा परमात्मा की दास है।
- मोक्ष = परमात्मा (भगवान विष्णु) की भक्ति द्वारा।
🔹 उदाहरण: मालिक और सेवक का संबंध।
✅ 3. विशिष्टाद्वैत वेदांत (Ramanujacharya)
- आत्मा और परमात्मा अलग भी हैं, पर जुड़े भी हैं।
- परमात्मा शरीर है, आत्मा उसकी आत्मा की तरह उससे जुड़ी है।
- मोक्ष = परमात्मा (नारायण) की सेवा करना।
🔹 उदाहरण: समुद्र और उसकी तरंगें – तरंगे अलग हैं पर समुद्र से ही हैं।
✅ 4. सांख्य दर्शन
- आत्मा (पुरुष) और प्रकृति अलग हैं।
- परमात्मा की बात मुख्य रूप से नहीं करता – एक अतीन्द्रिय पुरुष ही मुक्त होता है।
✅ 5. योग दर्शन (Patanjali)
- आत्मा (पुरुष) का परम लक्ष्य है – ईश्वर के साथ योग।
- ईश्वर को एक विशेष पुरुष (विशेषज्ञ) माना है जो सदा मुक्त है।
🔹 4. आत्मा और परमात्मा के बीच संबंध
| बिंदु | आत्मा | परमात्मा |
|---|---|---|
| प्रकृति | व्यक्तिगत चेतना | सार्वभौमिक चेतना |
| गुण | साक्षी, ज्ञानस्वरूप | सर्वज्ञ, सृष्टिकर्ता |
| स्थान | शरीर के अंदर | सब जगह |
| स्वरूप | सीमित | असीम |
| लक्ष्य | मोक्ष प्राप्त करना | मोक्ष देने वाला |
🔹 7. निष्कर्ष (Conclusion)
आत्मा है एक जीव की मूल सत्ता – चेतना, जो नाश नहीं होती।
परमात्मा है समस्त आत्माओं का मूल स्रोत – सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान ब्रह्म।
भिन्न दर्शनों में आत्मा और परमात्मा का संबंध भिन्न-भिन्न प्रकार से समझाया गया है।
परंतु सभी दर्शनों का उद्देश्य यही है कि – आत्मा को अपने वास्तविक स्वरूप (या परमात्मा) का बोध हो और वह बन्धनों से मुक्त होकर आनंद प्राप्त करे।
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Ātman and Paramātman: A Complete Spiritual and Philosophical Insight
🔹 1. What is Ātman?
Ātman is the conscious principle within every living being.
It is different from the body, mind, and intellect – indestructible and pure consciousness.
➤ It answers the question: “Who am I?”
✦ Key Characteristics of Ātman:
- Eternal (Nitya) – Never destroyed
- Conscious (Chetana) – Embodiment of awareness
- Witness (Sākṣī) – Observes without attachment
- Immutable (Avyaya) – Does not change
- Without Beginning or End (Anādi-Ananta)
✦ Scriptural References:
- Katha Upanishad: “Na jāyate mriyate vā kadācin” – The soul is neither born nor does it die.
- Bhagavad Gītā 2.20: “It is never born nor does it die…”
🔹 2. What is Paramātman?
Paramātman = Param (Supreme) + Ātman (Soul)
It refers to the Supreme Consciousness that pervades the entire universe – the source of all individual souls.
➤ It answers the question: “Who is the ultimate Supreme Being?”
✦ Key Characteristics of Paramātman:
- Omnipresent – Present everywhere
- Omniscient – Knows everything
- Omnipotent – All-powerful
- Beyond and within qualities (Nirguṇa and Saguṇa)
- Creator, Preserver, and Destroyer of the universe
✦ Scriptural References:
- Muṇḍaka Upaniṣad: “Brahmaiva idam sarvam” – This entire universe is pervaded by Brahman.
- Bhagavad Gītā 10.20: “I (Paramātman) reside in the heart of all beings.”
🔹 3. Comparison Between Ātman and Paramātman
| Aspect | Ātman (Soul) | Paramātman (Supreme Soul) |
|---|---|---|
| Nature | Limited, individual consciousness | Unlimited, universal consciousness |
| Presence | Within each living being | Pervades everything, including within Ātman |
| Function | Pure witness and experiencer | Creator, sustainer, and destroyer |
| Analogy | A drop | The entire ocean |
🔹 6. Conclusion
- Ātman is the eternal consciousness within every being – untouched by birth or death.
- Paramātman is the universal, all-pervading source of all souls – the Supreme Reality.
Different philosophies describe their relationship in unique ways, but the ultimate goal in all is:
➤ To realize the true nature of Ātman and attain liberation through union or devotion to Paramātman.


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